Sunday 2 April 2017

I got this message from one Imam of great mosque and he is expert in Islamic literature. Who write as follows. मुसलमान 8 बदलाव लाएं:- मुसलमानों को अब कुछ बदलाव करना ही पड़ेंगे, सामूहिक:- 1. मस्जिदों को सभी के लिए आम करदे, जो बंदा आना चाहे आये, जिसे दुआ मांगना हो ख़ुदा से मांगे। सभी धर्म के लोगों के आने का इंतज़ाम हो। उन्हें जो सवाल पूछना हो इस्लाम या ख़ुदा या रसूल के बारे में उनके जवाब भी कोई समझदार इंसान दे। 2. मस्जिदों को बस नमाज़ पढ़ने की ही जगह न बनाये। वहाँ ग़रीबो के खाने का इंतज़ाम हो, डिप्रेशन में उलझे लोगो की कॉउन्सेल्लिंग हो, उनके पारिवारिक मसलो को सुलझाने का इंतेज़ाम हो, मदद मांगने वालो की मदद की जाने का इंतेज़ाम हो। जब दरगाहों पर लंगर चल सकता हैं तो मस्जिदों में क्यों नहीं, और दान करने में मुस्लिमो का कहा कोई मुकाबला है, हम आगे आएंगे तो सब बदलेगा। 3.मस्जिदों में अगर कोई दूसरे मज़हब के भाई बहन आये तो उनके स्वागत या इस्तक़बाल का इंतज़ाम हो।उन्हें बिना खाना खिलाये हरगिज़ न भेजें। 4.मस्जिदों में एक शानदार लाइब्रेरी हो। जहाँ पर इस्लाम की हर किताब के साथ-साथ दूसरे मज़हब की किताबें भी पढ़ने को उपलब्ध हो। ई-लाइब्रेरी भी ज़रूर हो। बहुत होगये मार्बल, झूमर, ऐ.सी. और कालिंदो पर खर्च अब उसे बंद करके कुछ सही जगह पैसा लगाये। 5.समाज या कौम के पढ़े लिखे लोगो का इस्तेमाल करे। डॉक्टरों से फ्री इलाज़ के लिए कहे मस्ज़िद में ही कही कोई जगह देकर, वकील, काउंसलर, टीचर आदि को भी मस्जिद में अपना वक्त देने को बोले और यह सुविधा हर धर्म वाले के लिए बिलकुल मुफ्त हो।इसके लिए लगभग सभी लोग तैयार होजाएंगे, जब दुनिया के सबसे बड़े और सबसे व्यस्त सर्जन डॉ मुहम्मद सुलेमान भी मुफ्त कंसल्टेशन के लिए तैयार रहते हैं, तो आम डॉ या काउंसलर क्यों नही होंगे? ज़रूरत है बस उन्हें मैनेज करने की। 6.इमाम की तनख्वा ज्यादा रखे ताकि टैलेंटेड लोग आये और समाज को दिशा दें। 7.मदरसों से छोटे छोटे कोर्स भी शुरू करें कुछ कॉररेस्पोंडेंसे से भी हो। किसी अन्य धर्म का व्यक्ति भी आकर कुछ पढ़ना चाहे तो उसका भी इंतेज़ाम हो। 8.ट्रस्ट के शानदार हॉस्पिटल और स्कूल खोले जहाँ सभी को ईमानदारी और बेहतरीन किस्म का इलाज़ और पढ़ने का मौका मिले, बहुत रियायती दर पर। यह भी हर मज़हब वालो के लिये हो, बिलकुल बराबर। इनमे से एक भी सुझाव नया नहीं है, सभी काम 1400 साल पहले मदीना में होते थे...हमने उनको छोड़ा और हम बर्बादी की तरफ बढ़ते चले गए... और जा रहे हैं।रुके, सोचे और फैसला ले.

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