Friday 7 April 2017

*सुंदर गझल* कब कौंन कैसे बदलेगा, सबका हिसाब रखता हूँ...!! जिंदगी भी कितनी अजीब हैं, मुस्कुराओ, तो लोग जलते हैं, तन्हा रहो, तो सवाल करते हैं...!! लूट लेते हैं अपने ही, वरना, गैरों को कहां पता, इस दील की दीवार कहां से कमजोर हैं...!! नफरत के बाज़ार में जीने का अलग ही मज़ा हैं, लोग रुलाना नहीं छोड़ते, हम हसना नहीं छोड़ते...!! ज़िन्दगी गुज़र जाती हैं, ये ढूँढने में, के ढूंढना क्या हैं..!! अंत में तलाश सिमट जाती हैं, इस सुकून में, के... जो मिला.. वो भी कहाँ साथ लेकर जाना हैं..!! फुर्सत निकालकर, आओ कभी, मेरी महफ़िल में... लौटते वक्त दिल, नहीं पाओगे, अपने सीने में...!!

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