Monday 17 April 2017

बड़े होकर भाई बहन कितने दूर हो जाते हैं | इतने व्यस्त हैं सभीं, कि मिलने से मज़बूर हो जाते हैं | एक दिन भी जिनके बिना नहीं रह सकते थे हम, सब ज़िन्दगी मे अपने, मसरूफ हो जाते हैं | छोटी-छोटी बाँत बताय बिना हम रह नही पाते थे | अब बड़े-बड़े मुश्किलो से हम अकेले जूझते जाते हैं | ऐसा भी नही की उनकी एहमियत नही हैं कोई, पर अपनी तकलीफ़े जाने क्यूँ उनसे छिपाते हैं | रिश्ते नए, ज़िन्दगी से जुड़ते चले जाते हैं, और बच्चपन के ये़ रिश्ते कहीं दूर हो जाते है | खेल खेल मे रूठना मनाना रोज़ रोज़ की बात थी| अब छोटी सी गलतफैमी दिलो़ को दूर कर जाते हैं | सब अपनी उलझनो मे़ उलझ कर रह जाते हैं | कैसे बताए उन्हे़ हम, वो हमे कितना याँद आते हैं | वो जिन्हे एक पल भी हम भूल नही पाते हैं | बड़े होकर वो भाई बहन हमसे दूर हो जाते हैं |

No comments:

Post a Comment