Thursday 1 November 2018

*मैं उम्र बताना चाहता हूँ,* *जब भी यह सवाल कोई पूछता है,* *मैं सोच में पड़ जाता हूँ,* *बात यह नहीं, कि मैं,* *उम्र बताना नहीं चाहता हूँ,* *बात तो यह है, कि,* *मैं हर उम्र के पड़ाव को,* *फिर से जीना चाहता हूँ,* *इसलिए जबाब नहीं दे पाता हूँ,* *मेरे हिसाब से तो उम्र,* *बस एक संख्या ही है,* *जब मैं बच्चो के साथ बैठ,* *कार्टून फिल्म देखता हूँ,* *उन्ही की, हम उम्र हो जाता हूँ,* *उन्ही की तरह खुश होता हूँ,* *मैं भी तब सात-आठ साल का होता हूँ,* *और जब गाने की धुन में पैर थिरकाता हूँ,* *तब मैं किशोर बन जाता हूँ,* *जब बड़ो के पास बैठ गप्पे सुनता हूँ,* *उनकी ही तरह, सोचने लगता हूँ,* *दरअसल मैं एकसाथ,* *हर उम्र को जीना चाहता हूँ,* *इसमें गलत ही क्या है?* *क्या कभी किसी ने,* *सूरज की रौशनी, या,* *चाँद की चांदनी, से उम्र पूछी?* *या फिर खल खल करती,* *बहती नदी की धारा से उम्र पूछी?* *फिर मुझसे ही क्यों?* *बदलते रहना प्रकृति का नियम है,* *मैं भी अपने आप को,* *समय के साथ बदल रहा हूँ,* *आज के हिसाब से,* *ढलने की कोशिश कर रहा हूँ,* *कितने साल का हो गया मैं,* *यह सोच कर क्या करना?* *कितनी उम्र और बची है,* *उसको जी भर जीना चाहता हूँ,* *एकदिन सब को यहाँ से विदा लेना है,* *वह पल, किसी के भी जीवन में,* *कभी भी आ सकता है,* *फिर क्यों न हम,* *हर पल को मुठ्ठी में, भर के जी ले,* *हर उम्र को फिर से, एक बार जी ले..*

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