Sunday 11 June 2017

*किस धन का मैं अंहकार करूँ*जो अंत में मेरे प्राणों को बचा ही नहीं पाएगा....☺👏🏼 किस तन पे मैं अंहकार करूँ जो अंत में मेरी आत्मा का बोझ भी नहीं उठा पाएगा किन साँसों का मैं एतबार करूँ जो अंत में मेरा साथ छोड जाऐंगी किन रिश्तों का मैं यहाँ आज अभिमान करूँ जो रिश्ते शमशान में पहुँचकर सारे टूट जाऐंगे हाँ याद आया अब कि क्यों न यहाँ मैं अपने नेक कर्मों की पूंजी इकठ्ठी कर लूँ..... यह यहाँ भी और वहाँ भी साथ देते हैं । 🍃GOOD MORNIG🌹

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