Tuesday 15 August 2017

#एजुकेशन_फ़ॉर_यूथ (२) . हमे टेक्नोलॉजी के हमले ने नही मारा , बल्कि हमे हमारी नज़रियाती कमजोरी , ला इल्मी और इल्म के सलीबी पैटर्न के हमले ने मारा ,,। । आज भी मॉर्डन मैथ Bsc में एक बुक पढ़ाई जाती है जो इंडिया में भी पढ़ाई जाती है जिसे अलजेब्रा नाम दिया गया ,, योरोपियन्स ने (बो एली सीना ) को जबरदस्त तरीके से पढ़ाया जाता है ।। । जबकि अलजेब्रा हक़ीक़तन अरबिक शब्द (अल जबरा ) है ,, और वह बो एली सीना नही बल्कि हमारे अपने बू अली सीना हैं ,, बू अली सीना को आपने पढ़ा है ? क्या आप जानते भी हैं कि बू अली सीना कौन हैं ? आपको शर्मिंदा होना चाहिये यह जानकर कि योरोप का बच्चा बच्चा जानता है ,, उनकी सारी किताबें और एक एक लफ्ज़ उठा कर योरोपियन्स ने ट्रांसलेट कर दिया ,, ज़ुल्म तो यह है कि उनके नाम बदल दिए ताकि योरोपिन्स के बच्चे फख्र कर सकें कि यह कोई अंग्रेज़ दानिश्वर हैं जिन्हें हम पढ़ रहे हैं ।।।। । डूब मरने का मुकाम है ,,, यह तो झांकी है , ऐसे लाखों हजारों दानिश्वर अपने इल्म से हमे फायदा नही पहुँचा सके जो योरोप सभ्यता के लिए मील का पत्थर बने हुए हैं ।। हमारी यह हालत है कि जिसकी अंग्रेज़ी कमज़ोर है वह हमारे लिए मज़ाक का पात्र और अनपढ़ है , जो उर्दू या अरबी या मादरी जुबान बोलता है वह हमारी नज़र में कम पढ़ा लिखा है ।।। जबकि योरोप ने तुम्हारे दानिशवरों को अपनी मादरी जुबान इंग्लिश में ट्रांसलेट किया और अपने बच्चों को दिया ,, जबकि तुम खुद अपने बाप दादा के इल्म तक न पहुंच सके , क्योंकि चोर योरोप तुम्हारा इमाम बन चुका , वहां की ज़ुबान तुम्हे मोतबर हो गयी ।। तुम आज भी मैग्नेट को मकनातीस कहते हुए शर्माते हो ,, तुम आज भी प्लस माईनस में उलझे हो ।।। और हद दर्ज़ा शर्म ओ हैरत का मुकाम है कि अल्लामा इक़बाल जैसा दानिश्वर के नज़रिये को तुम आज तक अपनी मादरी ज़ुबानों में ट्रांसलेट करके आम आदमी तक नही पहुंचा सके ,,, फिर कैसे होगा बताओ ? फिर नज़रिया क्या घोल के पीने की चीज़ है जिसे तुम पी जाओगे ??.. क्या तुम आज सो सकोगे इस पोस्ट को पढ़ कर ? क्या तुम चाहते हो तुम्हारे बच्चे योरोप की मशीनरी और चिप लगे हुए रोबोट बन जाएं ? . ऐसा नही होना चाहिये था , कमसे कम अब तो नही ।। । कुछ ऐसे इदारों की ज़्यादा से ज़्यादा जरूरत है जो आपको अल्लामा इक़बाल , बु अली सीना , अल ख़्वारीज़मी से परिचय करवा सके ।। हमारे बच्चे अपने बाप दादा को पढ़ कर फख्र से भर जाएं ,, मुस्लिम कौम के माथे से अहसासे कमतरी और जहालत के आरोप हट सकें ।।। । कमसे हर गाँव कस्बे तक एक एक इस तरह के (मदरसे+ स्कूल ) पैटर्न के स्कूल होंना कोई बड़ी बात नही ,, आज कॉन्वेंट स्कूल का मकड़ जाल फैल सकता है ,,, तो हम क्यों पीछे हैं ? . उड़ा ली कुमरियों ने , तूतियों ने , अंदलिबो ने । चमन वालों ने मिल कर लूट ली तर्ज़े फुगां मेरी Tasneem Nazim Ghazi

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