Tuesday 16 August 2016

सोनिया गांधी पर मुन्नवर जी की शायरी---- ज़रूर पढ़ें -- Copy paste एक बेनाम सी चाहत के लिए आई थी, आप लोगों से मुहब्बत के लिए आई थी ! मैं बड़े-बूढ़ों की ख़िदमत के लिए आई थी, कौन कहता है हुक़ूमत के लिए आई थी.. !! शजर-ए-रंग-ओ-बू को नहीं देखा जाता, शक की नज़रों से बहू को नहीं देखा जाता..!! नफ़रतों ने मेरे चेहरे का उजाला छीना, जो मेरे पास था वो चाहने वाला छीना ! सर से बच्चों के मेरे बाप का पाला छीना , मुझसे गिरजा भी लिया और शिवाला छीना !! अब ये तक़दीर तो बदली भी नहीं जा सकती, मैं वो बेवा हूं जो इटली भी नहीं जा सकती.. !! मैं विदा होते ही मां बाप का घर भूल गई, भाई के चेहरे को बहनों की नज़र भूल गई ! घर को जाती हुई हर राहगुज़र भूल गई, मैं वो चिड़ियां हूं जो अपना शजर भूल गई..!! मैं तो जिस देश में आई थी वही याद रहा, हो के बेवा भी मुझे सिर्फ़ पती याद रहा..!!! अपने घर में ये बहुत देर कहां रहती है, ले के दक़दीर जहां जाए वहां रहती है ! घर वहीं होता है औरत का जहां रहती है, मेरे दरवाज़े पे लिख दो यहां मां रहती है..!! सब मेरे बाप के बुलबुल की तरह लगते हैं, सारे बच्चे मुझे राहुल की तरह लगते हैं..!! ऐ मुहब्बत तुझे अब तक कोई समझा ही नहीं, तेरा लिक्खा हुआ शायद कोई पढ़ता ही नहीं..! घर को छोड़ा तो पलटकर कभी देखा ही नही, वापसी के लिए मैंने कभी सोचा ही नहीं..!! घर की दहलीज़ पे कश्ती को जला आई हूं, जो टिकट था उसे दरिया में बहा आई हूं..!! मैंने आंखों को कहीं पर भी छलकने न दिया, चादर-ए-ग़म को ज़रा सा भी मसकने न दिया..! अपने बच्चों को भी हालात से थकने न दिया, सर से आंचल को किसी पल भी सरकने न दिया..!! मुद्दतें हो गईं खुलकर कभी रोई भी नहीं, इक ज़माना हुआ मैं चैन से सोई भी नहीं.. !! अपनी इज़्ज़त को पराया भी कहीं कहते हैं, चांदनी को कभी साया भी कहते हैं..! क्या मुहब्बत को बक़ाया भी कहीं कहते हैं, फल को पेड़ों का किराया भी कहीं कहते हैं..! मैं दुल्हन बन के भी आई इसी दरवाज़े से, मेरी अर्थी भी उठेगी इसी दरवाज़े से.. !!! मेरी आंखों की शराफ़त में यहां की मिट्टी, मेरी जीवन की मुहब्बत में यहां की मिट्टी.. ! मेरी क़ुर्बानी की ताक़त में यहां की मिट्टी, टूटी फूटी सी इस औरत में यहां की मिट्टी...!! कोख में रख के यह मिट्टी इसे धनवान किया, मैंने प्रियंका और राहुल को भी जवान किया..!! मेरे होठों पे है भारत की ज़ुबां की ख़ुशबू, किसी देहात के कच्चे से मकां की ख़ुशबू ! अब मेरे ख़ून से आती है यहां की ख़ुशबू, सूंघिए मुझको तो मिला जाएगी मां की ख़ुशबू..!! पेड़ बोया है तो इक दिन मुझे मेवा देगा, मेरी अर्थी को चिता भी मेरा बेटा देगा..!! राम का देश है नानक का वतन है भारत, कृष्ण की धरती है गौतम का चमन है भारत..! मीर का शेर है मीरा का भजन है भारत, जिसको हर एक ने सजाया वो दुल्हन है भारत..!! जानती हूं कि मैं सीता तो नहीं हो सकती, लेकिन इतिहास के पन्नों में नहीं खो सकती..!!! आप लोगों का भरोसा है ज़मानत मेरी, धुंधला-धुंधला सा वो चेहरा है ज़मानत मेरी.. ! आपके घर की ये चिड़िया है ज़मानत मेरी, आपके भाई का बेटा है ज़मानत मेरी.. !! है अगर दिल में किसी के कोई शक निकलेगा, जिस्म से ख़ून नहीं सिर्फ़ नमक निकलेगा..!!! --- मुनव्वर राना

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