Thursday 18 August 2016

यही इस पर्व की सार्थकता होगी रक्षा सूत्र बंधन अर्थात बिखरती, टूटती और बेजान पड़ी मानवता में उच्चमानवीय आदर्शों, मानवीय मूल्यों की रक्षा हेतु एक श्रेष्ठ सूत्र की खोज करना है। परस्पर प्रेम ही वो रक्षा सूत्र है जिसके बंधन में बंधकर मुग़ल सम्राट हुमायु ने भी रानी कर्मावती को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। राखी तो एक माध्यम भर है, उस स्नेह, प्यार और प्रेम की अभिव्यक्ति का जो एक बहन अपने भाई से करती है। आज जब एक बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधे तो ये वचन भी मांग ले कि मेरे भाई प्रत्येक नारी के प्रति सम्मान रखना, यही इस पर्व की सार्थकता है। इस दुनिया में पुरुष को पर नारी में माँ और बहन की छवि नज़र आ जाए तो सच समझना, इस दुनिया के कई कोहराम स्वतः मिट जायेंगे। मानवता की रक्षा का इससे बढ़कर दूसरा सूत्र और क्या हो सकता है ?

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