Friday, 14 July 2017

एक बहुत बड़े दानवीर हुए* *रहीम । उनकी ये एक खास बात* *थी के जब वो दान देने के लिए हाथ आगे बढ़ाते तो अपनी नज़रें नीचे झुका लेते थे।* *ये बात सभी को* *अजीब लगती थी कि* *ये रहीम कैसे दानवीर है* *ये दान भी देते है और* *इन्हें शर्म भी आती है ।ये बात जब कबीर* *जी तक जब पहुंची तो* *उनोहने रहीम को चार* *पंक्तिया लिख कर भेजी* *जिसमे लिखा था* - *ऐसी देनी देन जु* *कित सीखे हो सेन* *ज्यों ज्यों कर ऊंचो करें* *त्यों त्यों नीचे नैन ।* *इसका मतलब था* *के रहीम तुम ऐसा दान* *देना कहाँ से सीखे हो* *जैसे जैसे तुम्हारे हाथ* *ऊपर उठते है वैसे वैसे तुम्हारी नज़रें तुम्हारे नैन* *नीचे क्यू झुक जाते है* । *रहीम ने इसके बदले मे* *जो जवाब दिया वो जवाब इतना गजब का था कि जिसने भी सुना वो रहीम* *का भक्त हो गया इतना* *प्यारा जवाब आज तक* *किसी ने किसी को नही* *दिया । रहीम ने जवाब* *में लिखा* *देंन हार कोई और है* *भेजत जो दिन रैन* *लोग भरम हम पर करें* *तासो नीचे नैन ।।* *मतलब देने वाला* *तो कोई और है वो मालिक* *है वो परमात्मा है वो दिन* *रात भेज रहा है । परन्तु* *लोग ये समझते है के मै* *दे रहा हु रहीम दे रहा है* *ये विचार कर मुझे शर्म* *आ जाती है और मेरी* *आँखे नीचे झुक जाती है* *सच में मित्रो ये ना* *समझी ये मेरे पन का* *भाव यदि इंसान के अंदर* *से मिट जाये तो वो* *जीवन को और बेहतर* *जी सकता है* ।

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