Friday, 21 July 2017
जिस किसीने यह कविता लिखी हे आजकी हकीकत है। सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा मुश्किल बहुत है लेकिन जीना यहाँ हमारा, सब बुलबुलें यह कहकर, ख़ामोश हो गई हैं काैओं के शोर में अब, नग़मा कहाँ हमारा ! परबत वो सबसे ऊँचा, ग़म से पिघल रहा है मालूम है उसे भी, दर्दे निशां हमारा ! यही सिखा रहे हैं आपस में बैर रखना मिटता ही जा रहा है, हम सबमें भाईचारा ! हम बेवफ़ा ही समझे , जाते रहे हैं अब तक सौ बार ले चुके हैं वह इम्तेहां हमारा ! हर पेड़ पर हैं उल्लू कब्जा जमाए बैठे किस शाख पऱ बनेगा अब आशियाँ हमारा ! अज़मत दरी घोटाले, दहशत गरी है हर सू अब है हंसी उड़ाता, सारा जहां हमारा ! जंन्नत नुमा चमन में कैसे खिज़ा ना आए क़ातिल है बुलबुलों का अब बागबाँ हमारा , इकबाल आज होते तो आह आह करते कहते बदल गया है अब हिन्दुस्तां हमारा !!! .... ... हम याद दिला दें.., इसमें इकबाल साहब का नाम इसलिये जाेड़ा है क्याेंकी उन्हाेने ही" सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा "देश भक्ती से लवरेज यह रचना किया था
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