Saturday 25 November 2017

*अंधों की बस्ती में आईने की* *दुकान ढूंढ रहा हूं* *मैं इंसानों में आजकल इंसान ढूंढ रहा हूं* *अमन शांति भाईचारा यह सब सुना तो बहुत है* *कहीं देख भी पाउ बस ऐसा एक जहान ढूंढ रहा हूं* *पागल हूं जो सोचता हूं, कि पीतल भी सोना हो जाएगा* *बेईमानों की बस्ती में इमान ढूंढ रहा हूं* *जहर बहुत घोला है शब्दों ने हवाओं में* *बस जुबा मीठी कर दे ऐसे पकवान ढूंढ रहा हूं* *दिल्लगी ना सही बस दिल को ही लग जाए* *उस हसीन चेहरे की एक मुस्कान ढूंढ रहा हूं*

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