Saturday 10 September 2016

युवा पत्रकार भाइयों को समर्पित *कलम की कोई "काट" नहीं* "कहा जाता है कि "कलम" एक ऐसी चीज़ है, जिसकी "ताक़त" "तोप" और "तलवार" से भी ज़्यादा होती है। और आज के दौर में भी कलम की कोई "काट" नहीं है। "दरअसल, ये बात बिलकुल सही है, की कलम का कोई "सानी" नहीं है। कलम कोई "गोली" नहीं, लेकिन इसकी "मारक क्षमता" उससे भी कहीं ज़्यादा है, और कलम "बोली" भी नहीं है, लेकिन जैसे गोली का "घाव" भर जाता है, बोली का घाव नहीं भरता, वैसे ही "कलम" का "घाव" भी नहीं भरता।। "असल में, आज के इस दौर में कलम की "अच्छाई, और "बुराई के मारे सभी लोग हैं। हमारे देश ही नहीं दुनिया भर में कलम के मारे सिर्फ, "गरीब-गुरबा" लोग ही नहीं होते, बड़े बड़े "धुरंदर" भी अक्सर इसकी "ज़द" में आ जाते है। कलम के "मारे" सिर्फ "किसान" ही नहीं होते, "लेखपाल, "पटवारी, आदि भी इसकी मार से नहीं बचते हैं, कलम के मारे सिर्फ "मुवक्किल" ही नहीं होते, "वकील" भी अक्सर इसका "शिकार" होते हैं। सरकारी दफ्तर चाहें कितने ही "पेपरलेस" हो गए हों, लेकिन अब भी "कागज़-कलम" के बगैर दफ्तरों में काम नहीं चलता। "पटवारियों" के कलम की "ताक़त" तो गावों के "किसानों" से पूँछिये, और "मजिस्ट्रेटों" की कलम से तो लोगों की "तक़दीरें" ही बदल जाती हैं। कुछ लोगों की शिकायत है कि कलम "चलती" ही नहीं, लेकिन अगर ये चलती है तो "मार" जाती है। कलम अगर "बदल" जाये तो "राजनेताओं के भाग्य, और "चुनावों के परिणाम" तक बदल जाते हैं। शायर कहते हैं कि सिर्फ "जाम" ही नहीं बदलते, "कलम" भी "बदल" जाते हैं। "रंग" सिर्फ "गिरगिट" ही नहीं बदलता, कलम भी बदलती है। "लेकिन दोस्तों, कलम भी "दो रूप" में लिखती है, "सकारात्मक" और "नकारात्मक", कलम अगर "अच्छे" और "सही हाथों" में पहुँच कर "सकारात्मक" लिखती है तो "समाज" में एक "क्रांति", और "जागरूकता" ला सकती है, लेकिन कलम अगर "गलत हाथों" में पहुँच कर "नकारात्मक" लिखने लगे तो इसके "परिणाम" हमारे समाज के लिये और लोगों के लिये बहुत "घातक" हो सकते हैं। "इसलिए मेरे दोस्तों, इसमें कोई शक़ नहीं कि कलम का कोई सानी नहीं, और इसकी धार "तलवार" से भी "तेज़" होती है, इसलिये हमें और आपको चाहिए कि इस कलम नामक "हथियार" का इस्तेमाल बहुत सोच समझ कर समाज में अच्छाई, और भलाई के काम करने के लिये करें, किसी के बुरे के लिये इसका इस्तेमाल ना करें, वरना कहीं ऐसा ना हो कि इसकी "धार की ज़द" में आकर लोगों की ज़िन्दगियाँ "बर्बाद" हो जाएं, और हम लोगों की "सिसकियों" और "आहों" के "ज़िम्मेदार" बनें।।

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