Thursday 26 May 2016

हमें क्या पता था जिंदगी इतनी अनमोल है, कफन ओढ़ के देखा तो नफरत करनेवाले भी रो रहे थे ! शिकायत "मौत" से नहीं ... "अपनों" से थी मुझे....!!! जरा सी आँख बंद क्या हुई ...वो कब्र खोदने लगे...!!! कौन सा हिस्सा रफ़ू करूँ जिंदगी के लिबास का, जेब सिलता हूँ तो गिरेबान फटने लगता है।। ख्वाहिशों के अम्बार में कहीं दब गई इंसानियत ऊँचा उठने की हसरत में गिरता जा रहा है आदमी...!!.. सीख रहा हूँ धीरे-धीरे तेरे शहर के रिवाज, जिससे मतलब निकल जाए, उसे जिंदगी से निकाल देना। इतनी ठोकरे देने के लिए शुक्रिया, ए-ज़िन्दगी.. चलने का न सही,,,सम्भलने का हुनर तो आ गया. एक सेब गिरा और न्यूटन ने ग्रेविटी की खोज कर ली.. यहां रोज ही इंसान गिर रहे हैं और कोई मानवता नहीं खोज पा रहा है. 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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