दिल के टूटने पर भी हँसना,
शायद "जिन्दादिली" इसी को कहते हैं।
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ठोकर लगने पर भी मंजिल के लिए भटकना,
शायद "तलाश" इसी को कहते हैं।
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सूने खंडहर में भी बिना तेल के दिये जलाना,
शायद "उम्मीद" इसी को कहते हैं।
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टूट कर चाहने पर भी उसे न पा सकना,
शायद "चाहत" इसी को कहते हैं।
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गिरकर भी फिर से खडे हो जाना,
शायद "हिम्मत" इसी को कहते हैं.!!
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"जिंदादिली","तलाश","उम्मीद","चाहत","हिम्मत",
शायद "जिन्दगी" इसी को कहते हैं .!!
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