Sunday, 16 April 2017
कभी-कभी सोचता हूँ कभी-कभी सोचता हूँ.... कितने साल गुजर गए, यूँ ही जीवन जीते....... कभी बिना भूख के खाते, और........ कभी बिना प्यास के पीते...! इस लम्बे सफ़र में, न जाने कितने पेड़ों की... शीतल छाँव मुझे मिली..! कितने ही फूलों और कलियों की मोहक मुस्कानें..... इस चहरे पर खिली | मेरी ज़िन्दगी की, अनमोल साँसों पर.... कुछ हवाओं का क़र्ज़ है ...! मुझे लगता है कि... इस खूबसूरत दुनिया के लिए, मेरा भी तो कुछ फ़र्ज़ है ...! किसी मुरझाये चेहरे को अगर.. मुट्ठी भर मुस्कान दे सकूँ ...! और किसी निराश, उलझन भरे दिल को .... एक छोटा सा अरमान दे सकूँ | तो मुझे अपने होने का, मतलब समझ में आता है | और वक़्त का हर लमहा .... जैसे मुझे गले लगाकर... आगे बढ़ जाता है..........!!!!!
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