Saturday 7 January 2017

गुजारी उम्र ये शामो सहर समेटे हुए , कि मौत आयेंगी बरहक़ ये डर समेटे हुए ! कभी किसी को न रहना हमेशा दुनिया में , परिन्दा जाता नशेमन में , पर समेंटे हुए ! बताओ उनको ज़रा, कोई दीन दुनिया की , जो लोग बैठे हैं औरों का, ज़र समेटे हुए ! नज़र ठहरती नहीं है, जमाल ये उसका , कोई बदन में है शम्शो ,कमर समेटे हुए ! भला मैं कैसे मना करता दिल नहीं दूंगा , वो आये सामने मीठी, नज़र समेटे हुए ! मंसूबे जाहिर नहीं होने देते हैं हर्गिज कभी , नकाब कुछ इस तरह लगाते हैं खुदगर्ज सभी !!

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