Saturday 26 November 2016

गुलजारजीकी एक सुंदर कविता जिन्दगी की दौड़ में, तजुर्बा कच्चा ही रह गया...। हम सिख न पाये 'फरेब' और दिल बच्चा ही रह गया ! बचपन में जहां चाहा हँस लेते थे, जहां चाहा रो लेते थे...। पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसुओ को तन्हाई ! हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से... देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में ! चलो मुस्कुराने की वजह ढुंढते हैं... तुम हमें ढुंढो... हम तुम्हे ढुंढते हैं !! - गुलज़ार

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