Saturday 31 October 2015

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी एक निडर नेता थीं जिन्होंने परिणामों की परवाह किए बिना कई बार ऐसे साहसी फैसले लिए, जिनका पूरे देश को लाभ मिला और उनके कुछ ऐसे भी निर्णय रहे जिनका उन्हें राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ा लेकिन उनके प्रशंसक और विरोधी, सभी यह मानते हैं कि वह कभी फैसले लेने में पीछे नहीं रहती थीं। जनता की नब्ज समझने की उनमें विलक्षण क्षमता थी।उनके समकालीन नेताओं के अनुसार बैंकों का राष्ट्रीयकरण, पूर्व रजवाड़ों के प्रिवीपर्स समाप्त करना, कांग्रेस सिंडिकेट से विरोध मोल लेना, बांग्लादेश के गठन में मदद देना और अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को राजनयिक दाँवपेंच में मात देने जैसे तमाम कदम इंदिरा गाँधी के व्यक्तित्व में मौजूद निडरता के परिचायक थे। साथ ही आपातकाल की घोषणा, लोकनायक जयप्रकाश नारायण तथा प्रमुख विपक्षी नेताओं को जेल में डालना, ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसे कुछ निर्णयों के कारण उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
लाल बहादुर शास्त्री के बाद प्रधानमंत्री बनी इंदिरा को शुरू में 'गूंगी गुड़‍िया' की उपाधि दी गई थी। लेकिन 1966 से 1977 और 1980 से 1984 के दौरान प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा ने अपने साहसी फैसलों के कारण साबित कर दिया कि वह एक बुलंद शख्यिसत की मालिक हैं।उड़ीसा में एक जनसभा में श्रीमती गाँधी पर भीड़ ने पथराव किया। एक पत्थर उनकी नाक पर लगा और खून बहने लगा। इस घटना के बावजूद इंदिरा गाँधी का हौंसला कम नहीं हुआ। वह वापस दिल्ली आईं। नाक का उपचार करवाया और तीन चार दिन बाद वह अपनी चोटिल नाक के साथ फिर चुनाव प्रचार के लिए उड़ीसा पहुँच गईं। उनके इस हौंसले के कारण कांग्रेस को उड़ीसा के चुनाव में काफी लाभ मिला।एक और वाकया 1973 का है। इंदिराजी कांग्रेस कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में भाग लेने इलाहाबाद आईं थीं। उनकी सभा के दौरान विपक्षी नेताओं ने जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया और उन्हें काले झंडे दिखाए गए। लेकिन उस जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन से इंदिराजी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आई। अपने संबोधन में विरोधियों को शांत करते हुए उन्होंने सबसे पहले कहा कि ‘मैं जानती हूँ कि आप यहाँ इसलिए हैं क्योंकि जनता को कुछ तकलीफें हैं। लेकिन हमारी सरकार इस दिशा में काम कर रही है।' इंदिराजी खामियाजे की परवाह किए बगैर फैसले करती थीं। आपातकाल लगाने का काफी विरोध हुआ और उन्हें नुकसान उठाना पड़ा लेकिन चुनाव में वह फिर चुनकर आईं। ऐसा चमत्कार सिर्फ वही कर सकती थीं।प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुत्री इंदिरा का जन्म इलाहाबाद में 19 नवंबर 1917 को हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने अपनी वानर सेना बनाई और सेनानियों के साथ काम किया। जब वह लंदन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ रही थीं तो वहाँ आजादी समर्थक ‘इंडिया लीग’ की सदस्य बनीं।
भारत लौटने पर उनका विवाह फिरोज गाँधी से हुआ। वर्ष 1959 में ही उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया। नेहरू के निधन के बाद जब लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो इंदिरा ने उनके अनुरोध पर चुनाव लड़ा और सूचना तथा प्रसारण मंत्री बनीं।वह वर्ष 1966 से 1977 और 1980 से 1984 के बीच प्रधानमंत्री रहीं। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद वह सिख अलगाववादियों के निशाने पर थीं। 31 अक्टूबर 1984 को उनके दो सिख अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी।

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