Monday, 3 July 2017
मीरारोड मीलादुन नबी सअव के जलसेमे ऐम आई पटेल और जनाब कमल मीनाई और हाजी हाशम लशकरीया और खान साहब स्टेज पर दिखाई दे रहे है। सजदा-ए-इश्क़ हो तो "इबादत" मे "मज़ा" आता है..... खाली "सजदों" मे तो दुनिया ही बसा करती है..... लौग कहते हैं के बस "फर्ज़" अदा करना है..... एैसा लगता है कोई "क़र्ज़" लिया हो रब से..... तू झुकता कहीं और है और "सोचता" कहीं और है..... कोई जन्नत का तालिब है तो कोई ग़म से परेशान है..... "ज़रूरत" सज्दा करवाती है "इबादत" कौन करता है..... क्या हुआ तेरे माथे पर है तो "सजदों" के निशान..... कोई ऐसा सजदा भी कर जो छोड़ जाए ज़मीन पर निशान..... फिर आज हक़ के लिए जान फ़िदा करे कोई..... "वफा" भी झूम उठे यूँ वफ़ा करे कोई..... नमाज़ 1400 सालों से इंतेज़ार में है..... कि मुझे "सहाबाओ" की तरह अदा करे कोई..... एक ख़ुदा ही है जो सजदों में मान जाता है..... वरना ये इंसान तो जान लेकर भी राज़ी नही होते..... देदी अज़ान मस्जिदो में "हय्या अलस्सलाह"..... ओर लिख दिया बाहर बोर्ड पर अंदर ना आए फलां और फलां..... ख़ोफ होता है शैतान को भी आज के मुसलमान को देखकर, नमाज़ भी पढ़ता है तो मस्जिद का नाम देखकर. - अल्लामा इक़बाल.
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