Wednesday, 24 October 2018
महर्षि वाल्मीकि का मूल नाम रत्नाकर था एक भीलनी ने बचपन में इनका अपहरण कर लिया और भील समाज में इनका लालन पालन हुआ। भील परिवार के लोग जंगल के रास्ते से गुजरने वालों को लूट लिया करते थे। रत्नाकर ने भी परिवार के साथ डकैती और लूटपाट का काम करना शुरू कर दिया। ऐसे रत्नाकर बने डाकू से महर्षि वाल्मीकि एक दिन संयोगवश नारद मुनि जंगल में उसी रास्ते गुजर रहे थे जहां रत्नाकर रहते थे। डाकू रत्नाकर ने नारद मुनि को पकड़ लिया। इस घटना के बाद डाकू रत्नाकर के जीवन में ऐसा बदलाव आया कि वह डाकू से महर्षि बन गए। दरअसल जब वाल्मीकि ने नारद मुनि को बंदी बनाया तो नारद मुनि ने कहा कि, तुम जो यह पाप कर्म करके परिवार का पालन कर रहे हो क्या उसके भागीदार तुम्हारे परिवार के लोग बनेंगे, जरा उनसे पूछ लो। वाल्मीकि को विश्वास था कि सभी उनके साथ पाप में बराबर के भागीदार बनेंगे, लेकिन जब सभी ने कहा कि नहीं, अपने पाप के भागीदार तो केवल तुम ही बनोगे तो वाल्मीकि का संसार से मोह भंग हो गया।
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