Sunday, 18 June 2017
आज फ़ादर्स डे है...वालिद साहब आज भी हम में ज़िन्दा हैं... वो ख़ुद से ज़्यादा अपने बच्चों को चाहते थे... सोते में एक लफ़्ज़ मुंह से निकलता-पानी, तो हमें पानी पिलाते... हमें याद नहीं कि बचपन में कभी हमने ख़ुद उठकर पानी पिया हो... जब तक ज़िन्दा रहे, हम घर जाते तो उन्हें घर से बाहर ही बेचैन टहलते देखते... वो कहते- बेटा बहु ओर पोटे आने वाला है... और वो हमारे इंतज़ार में घर के बाहर ही टहलते रहते... ये जानते हुए कि हमारे घर आने में अभी कई घंटे बाक़ी हैं... हमसे पहले कभी उन्होंने खाना नहीं खाया... कभी हमारी आंखें नम नहीं होने दीं... ये है हमारे वालिद की हमारे लिए मुहब्बत... उनके के जाने के बाद ही दुख-तकलीफ़ का अहसास हुआ... ज़िन्दगी में उनकी कमी सबसे ज़्यादा खलती है... अल्लाह हमारे वालेदैन की मग़फ़िरत करे और उन्हें जन्नतुल-फ़िरदौस में आला मुक़ाम अता करे, आमीन... (ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)
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