Sunday, 7 May 2017
एक साँस भी तब आती है, जब एक साँस छोड़ी जाती है!!"?.: 🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱 नंगे पाँव चलते “इन्सान” को लगता है कि “चप्पल होते तो क अच्छा होता” बाद मेँ………. “साइकिल होती तो कितना अच्छा होता” उसके बाद में……… “मोपेड होता तो थकान नही लगती” बाद में……… “मोटर साइकिल होती तो बातो-बातो मेँ रास्ता कट जाता” फिर ऐसा लगा की……… “कार होती तो धूप नही लगती” 🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀 फिर लगा कि, “हवाई जहाज होता तो इस ट्रैफिक का झंझट नही होता” 🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱 जब हवाई जहाज में बैठकर नीचे हरे-भरे घास के मैदान देखता है तो सोचता है, कि “नंगे पाव घास में चलता तो दिल को कितनी “तसल्ली” मिलती”….. 🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀 ” जरुरत के मुताबिक “जिंदगी” जिओ – “ख्वाहिश”….. के मुताबिक नहीं……… 🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱 क्योंकि ‘जरुरत’ तो ‘फकीरों’ की भी ‘पूरी’ हो जाती है, और ‘ख्वाहिशें’….. ‘बादशाहों ‘ की भी “अधूरी” रह जाती है”….. 🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀 “जीत” किसके लिए, ‘हार’ किसके लिए ‘ज़िंदगी भर’ ये ‘तकरार’ किसके लिए… 🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱 जो भी ‘आया’ है वो ‘जायेगा’ एक दिन फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए… 🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀 ए बुरे वक़्त ! ज़रा “अदब” से पेश आ !! “वक़्त” ही कितना लगता है “वक़्त” बदलने में……… 🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱🍀🌱
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