Friday, 5 May 2017

_मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ,_ _आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।_ _लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,_ _मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।_ _छोटे से बडा बनना आसाँ नहीं होता,_ _जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।_ _मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,_ _छालों में छिपी लकीरों का असर जानता हूँ।_ _बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब मुस्कुरा देता हूँ,_ _आधे दुश्मनो को तो यूँ ही हरा देता हूँ!!_ _काफी कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,_ _क्योंकि एक दिन मिट्टी में मिलना है ये जानता हूँ

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