गुजारी उम्र ये शामो सहर समेटे हुए ,
कि मौत आयेंगी बरहक़ ये डर समेटे हुए !
कभी किसी को न रहना हमेशा दुनिया में ,
परिन्दा जाता नशेमन में , पर समेंटे हुए !
बताओ उनको ज़रा, कोई दीन दुनिया की ,
जो लोग बैठे हैं औरों का, ज़र समेटे हुए !
नज़र ठहरती नहीं है, जमाल ये उसका ,
कोई बदन में है शम्शो ,कमर समेटे हुए !
भला मैं कैसे मना करता दिल नहीं दूंगा ,
वो आये सामने मीठी, नज़र समेटे हुए !
मंसूबे जाहिर नहीं होने देते हैं हर्गिज कभी ,
नकाब कुछ इस तरह लगाते हैं खुदगर्ज सभी !!
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