Monday, 27 April 2015

इतिहास के झरोखे से.
अगस्त 1990 में सद्दाम हुसैन शासित ईराक ने कुवैत पर आक्रमण कर दिया. कुवैत सैन्य शक्ति संपन्न न था अत: चंद घंटो में लगभग पूरे कुवैत पर ईराक ने कब्ज़ा कर लिया.
इससे बौखलाए अमेरका और सऊदी अरेबिया ने ईराक को सबक सिखाने के लिए उसपर आक्रमण किया.
इस समय पूरे कुवैत और ईराक में लगभग 50 हज़ार भारतीय कार्यरत थे. केंद्र में सरकार विश्वनाथ प्रताप सिंह की थी जिसे मंडल कमंडल से फुर्सत न थी.
सद्दाम हुसैन चूँकि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन से जुड़े हुए थे अत: उनके पहले इंदिरा जी और बाद में राजीव जी से मधुर सम्बन्ध रहे थे.
राजीव जी विपक्ष के नेता थे और उन्होंने तुरंत हॉटलाइन पर सद्दाम से संपर्क कर के भारतीयों को सेफ पैसेज दिए जाने का आग्रह किया जिसे सद्दाम ने तुरंत मान लिया.
उन सात दिनों में लगभग 50 हज़ार भारतीय युद्ध क्षेत्र से एयर इण्डिया के विमानों द्वारा सुरक्षित भारत लाए गए.
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ये पोस्ट उन युवाओं के लिए है जो यमन से 1500 और नेपाल से 500 भारतीयों के निकाले जाने को ऐतिहासिक मान रहे हैं.
इस देश को दुनिया में इज्ज़त से देखा जाता है तो पिछले 9 महीनों के कारण नहीं बल्कि पिछले 65 सालों के कारण.
भारत का प्रधानमन्त्री होना गौरवपूर्ण इसलिए है कि इस पद को नेहरु, शास्त्री, इंदिरा, राजीव और डॉ मनमोहन सिंह जैसे बेहतरीन इंसानों ने सुशोभित किया है.

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