Wednesday, 21 September 2016
हाथ तो लोग मिलाते है,दिल मगर मिलते नही, पौधे तो ऊगाते है सैंकडो,फुल सबमें खिलते नही, कुदरत ने है खूब सजाया दुनिया के बगीचों को, कौन देखे ईन्हे,लोग बैठे है करके बंध दरिचों को, ऊमदा ईन्सानो को है जहाँने खाई में धकेला, बीक रहा है झूठ हरतरफ.सच बैठा है अकेला, बिना मतलब यहाँ कौन किसको पूछता है, रख दिल में मुहब्बत कौन किस से मिलता है, हर शख्स है चाहता कि सुकून की हो जिन्दगी, बदल जाए माहोल और रंग लाए ऊनकी बन्दगी, ढुंढ रहेहै बुजूगॅ अपनो में मुहब्बत के दो बोल, कहो नामुराद औलाद से कि अब तो आँखे खोल, घर घर में है बेचैनी और लगी है आग हसद की, भूले है तहेज़ीब और बात नही रही अब अदब की, शहेनाज़ बाबी
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