Thursday, 17 July 2014

PM Visit.

नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिक्स सम्मेलन के लिए ब्राजील यात्रा पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय मौका था जहां वह अपनी कूटनीतिक धाक जमा सकते थे। लेकिन, दौरे के दौरान ऐसी कई बातें हो गईं, जिनसे लगता है कि मोदी की कूटनीति पहले ही मौके पर लड़खड़ा गई।

बर्लिन में बंटाधार

ब्राजील जाते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नरेंद्र मोदी बर्लिन में जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल के साथ डिनर करने उतर गए। लेकिन, मर्केल उस वक्त ब्राजील में जर्मनी और अर्जेन्टीना के बीच चल रहा फुटबॉल वर्ल्ड कप का फाइनल मैच देख रही थीं। बहुत से जानकारों का मानना है कि नरेंद्र मोदी और उनके सलाहकारों को इतना अंदाजा होना चाहिए था कि जर्मनी फाइनल में जा सकता है और मर्केल मैच देखने जा सकती हैं। ऐसा होता तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की शर्मिंदगी से बचा जा सकता था।
[ जारी है ]

जापान को नाराज करने का रिस्क

बर्लिन में इस 'बंटाधार' का एक नुकसान और हो सकता है। भारतीय प्रधानमंत्री ने जापान से वादा किया था कि भारत की नई सरकार का सबसे पहला द्वीपक्षीय रिश्ता जापान के साथ ही होगा। मर्केल से मिलने की जल्दबाजी दिखाकर जापान को नाराज करने का खतरा उठाया गया।

फिर रूस के साथ उलझन

जर्मनी में शर्मिंदगी उठाने के अगले ही दिन भारतीय प्रधानमंत्री के लिए एक और असहज कर देने वाली बात हुई। उनकी रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के साथ बैठक तय थी, लेकिन यह बैठक तय समय पर हुई ही नहीं। 'द टेलिग्राफ' अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग की मुलाकात मोदी-पुतिन बैठक के बाद होनी थी। पर पुतिन उस बैठक के लिए फोर्टलेजा आए ही नहीं क्योंकि वह 1600 किलोमीटर दूर ब्रासीलिया में ब्राजील की राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ के साथ बैठक कर रहे थे जो तय समय से दो घंटे ज्यादा चली। यानी, मोदी इंतजार ही करते रह गए। इस बैठक का समय बदलने की भी कोशिश की गई, लेकिन भारतीय पक्ष उसमें भी नाकाम रहा। बाद में मंगलवार को किसी तरह दोनों नेताओं के बीच 40 मिनट की मुलाकात हो सकी।

इस घटना से अंतरराष्ट्रीय मीडिया में यह सवाल उठा कि रूस ने जानबूझकर भारत को इंतजार तो नहीं कराया? 'द टेलिग्राफ' की रिपोर्ट कहती है कि भारत के विदेश नीति जानकारों का एक खेमा सोच रहा है कि पुतिन यह जानते हुए भी समय पर नहीं पहुंचे कि भारतीय प्रधानमंत्री उनका इंतजार कर रहे हैं, कहीं यह रूस की ओर से भारत के लिए कोई संकेत तो नहीं है?

ब्रिक्स बैंक का मुख्यालय

चीन ब्रिक्स बैंक का मुख्यालय अपने यहां ले जाने में कामयाब रहा। भारत भले ही इस बात पर खुश हो सकता है बैंक का अध्यक्ष भारतीय होगा लेकिन उसका मुख्यालय पाकर चीन ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है और नरेंद्र मोदी ऐसा नहीं करवा पाए।

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